" मैं तो किसान हूँ - मेरा दर्द मिट्टी और मिट्टी का दर्द मैं ही जानता हूँ"

मैं तो किसान हूँ, मुझे किसानी आती है, गर पड़े ज़रुरत, तो मुझे कुर्बानी भी आती है| ईमानदार हूँ, कर्मठ हूँ, ठोस हूँ, सहनशील भी हूँ, ख्वाहिशें भी हैं, जिम्मेदारियां भी हैं, बस जुबां तक आती नहीं मेरी कहानी है| खेत खलिहानों में बचपन बीता, यहीं बीती जवानी है, पतझड़ में भी जो खेतों में हरियाली है, वो ईमानदारी से की गयी मेरी किसानी है, अन्न-दाता होना तो मेरा स्वाभिमान है, अहंकार तो मुझ में दूर-दूर तक नहीं, और न आती मुझे बेईमानी है| मेरी इच्छाएं छोटी सही, मगर कद मेरा छोटा नहीं, आशाएं होती हैं किसान की सिर्फ इतनी सी: समय से वर्षा, समय से सूरज, समय से फूल, समय से फल, कट जाए समय से ही फसल| बेशक बाहर से ठोस हूँ, दिल मेरा भी पिघलता है, मेरा पसीना, मेरा खून, पल पल मिट्टी में मिलता है| आज जो मैं दर पर तेरे आया हूँ, भीख का कटोरा ले कर नहीं, सच्चाई का पिटारा लाया हूँ| जिस कुर्सी पर था तुझे बिठाया, उसी की जिम्मेदारियां तुझे समझाने आया हूँ| तुझ तक आवाज़ पहुंची नहीं आवाम की, कमरा शायद तेरा ध्वनिरोधी हो गया है, और कानों तक तेरे शोर न पहुंचा, इसलिए अपनी व्य...