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सिलिसिला...

  बीज की फितरत है फैलते जाने की,  लेकिन   ज़मीन की भी ज़िद है संभालने की, पत्ते को जल्दी है निकल जाने की, और फूल की चाह है खिल जाने की,  लेकिन फल की ज़िद है  फूल से फल  बन जाने की,  और एक बीज से अनेक बीज बनाने की, और फिर ज़मीन पा कर फैलते ही जाने की |  ये कुदरत का करिश्मा है या सिलिसिला चाहत का, बीज बिना ज़मीन बंजर, और ज़मीन पर ही है बीज पूर्णतः निर्भर||                                                                       -Shipra Anadi Dev Kaushik

सुनने वाला यहाँ कोई नहीं...

सुनने वाला यहाँ कोई नहीं,  सुनाने वालों का शोर बहुत है |  दवा देने वाला यहाँ कोई नहीं, मर्ज़ बताने वालों की भीड़ बहुत है |  कही गई बात यहाँ समझता नहीं कोई, दिल के मसले सुलझाने वालों की भीड़ बहुत है | फिर भी दिल की बात समझता नहीं कोई, मन की बात सुनाने वालों का शोर बहुत है |  काश, कोई रुक कर ठहर जाए यहाँ, कुछ अपनी कहे, कुछ मेरी सुने, अपनी अपनी कह कर निकल जाने वालों की भीड़ बहुत है |  खट्टी - मीठी हों, तो अच्छी लगती हैं, दिल को ठेस पहुंचाने वाली बातों की  पीड़  बहुत है |  सुनने वाला यहाँ कोई नहीं, सुनाने वालों का शोर बहुत है |  -Shipra Anadi Dev Kaushik

आखिरी तमन्ना

  Rules are never equal. And so is freedom... किसी पर बँध जाता है, किसी को बाँध जाता है, किसी को मिल जाता है, किसी से छिन जाता है, कोई उड़ जाता है, कोई रुक जाता है, कोई खुश है, कोई दुःख के हाथों मजबूर है, कोई बह जाता है, कोई ठहर जाता है, ये तो सैलाब है........  किसी के लिए गैरतमंद, तो किसी के लिए बेगैरत है, ऊँची से ऊँची इमारत को चूर करता है यही.... 2  तो मिटटी से चट्टानें भी बनता है यही....  और  उन्हीं चट्टानों को फिर मिट्टी में मिलाता भी यही है....  मिट्टी है सब, मिट्टी में सब मिलना है...... 2  जो मान ले ये, जो जान ले ये.... 2  फिर नहीं बचती ....  आखिरी कोई तमन्ना है.... 2