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चलते-चलते बस चलता ही रहा मैं माँ....

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Home has been calling since I left it. But for the first time, I answered the call... People left their cities, their countries to go out and earn more. But, now they are answering the home call during this time of the  global pandemic   COVID-19 outbreak . A few feelings of a REMIGRATOR as he returns back home. घर से निकल कर, देखा न कभी मुड़ कर, पर आज लौट आया हूँ मैं माँ, कुछ पाने की हसरत में थोड़ी दूर क्या निकला था, चलते-चलते बस चलता ही रहा मैं  माँ|  जहाँ से उगा था, जहाँ से उठा था, लगने लगा था सब पुराना,  आगे बुला रहा था दौड़ता ज़माना, मैं भी आगे चलते-चलते, बस चलता ही रहा था माँ, आज जो लौटा हूँ,  हाथ तेरे काँप रहे हैं, मोटे शीशे से ऐनक के, पिता जी मुझको ताक रहे हैं|  जब से कद मेरा लम्बा हुआ, पिता का घर छोटा हुआ, नया घर जो मैंने बनाया, अपने घमंड सा ऊँचा उसे था पाया, आना तो है पिता के इसी घर में लौट कर, ये भूल चुका था मैं माँ|  तेरी रोटी घी में भीगी...