बेज़ुबान ख़याल
"बेज़ुबान ख़याल"
"न कवयित्री हूँ, न कविताएँ लिखती हूँ,
न लेखिका हूँ, न लेख लिखती हूँ,
बस मन में उठते कुछ सवाल और उमड़ते कुछ ख़याल,
ओस की चादर ओढ़ कर कभी कुछ गुनगुनाते हैं,
कभी गुदगुदाते हैं, तो कभी बेचैन कर सताते हैं,
जिस पल ठंडी पड़ी कलम को छु जाते हैं,
बेज़ुबान ख़याल खुद बा खुद शब्द बन जाते हैं"
- शिप्रा अनादि देव कौशिक
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